देवभाषा संस्कृत की गहरी बातें
संस्कृत भाषा में 102078.5 करोड़ शब्दों का विशाल कोष है । इतना बड़ा तो क्या , इसके आसपास भी किसी भाषा का शब्दकोष नहीं है । कंप्यूटर और तकनीकी दृष्टि से अगले 100 वर्षों तक संसार इस शब्दकोष से लाभान्वित हो सकता है ।
कम से कम शब्दों से बड़ा से बड़ा वाक्य बनाया जा सकता है - इस देवभाषा में । यह एक अदभुत बात है ।
अमेरिका ने तो संस्कृत के अध्ययन के लिए एक विश्वविद्यालय बनाया है । नासा ने भी इस भाषा को जानने-समझने के लिए अलग से एक विभाग बनाया है ।
जुलाई 1987 की फोर्ब्स पत्रिका में छपा था कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत भाषा सबसे ज्यादा उपयोगी और सरल है ।
देवभाषा संस्कृत दैनिक जीवन की सबसे श्रेष्ठतम भाषा है । नासा का कहना है कि इससे स्पष्ट रूप से समझाने वाली भाषा इस ब्रह्माण्ड में है ही नहीं ।
आर्यावर्त के भारतखण्ड में केवल उत्तराखण्ड प्रदेश में ही हमारी देवभाषा संस्कृत को राजकीय भाषा माना गया है ।
(हमारे लिए इससे दुःखद स्थिति और क्या हो सकती है !)
नासा के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि अमेरिका में सन 2025 तक 6ठी पीढी के लिए और सन 2034 तक 7वीं पीढी के लिए संस्कृत भाषा में विशिष्ट कंप्यूटर का निर्माण हो जाएगा । यह एक भाष्य क्रांति का सूत्रपात होगा कि पूरा विश्व संस्कृत सीखने को लालायित हो जाएगा ।
आधुनिक विज्ञान में वेद, उपनिषद, श्रुति, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत आदि संस्कृतीय महान ग्रंथों का सदुपयोग हो सकेगा । यह कथ्य रूस के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय और नासा जैसी अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं का कथन है । नासा ने तो 60 हजार ताड़पत्रों में लिखे संस्कृतीय श्लोकों का अध्ययन प्रारम्भ भी कर दिया है ।
विशेषज्ञों का कहना है कि देवभाषा संस्कृत के अध्ययन से मानव मस्तिष्क का तीव्रगति से विकास होता है । विद्यार्थी जीवन से ही विकास प्रारम्भ हो जाता है और गणित , विज्ञान जैसे जटिल विषय भी प्रिय लगने लगते हैं । स्मरणशक्ति का अदभुत विकास हो जाता है । लन्दन की प्रसिद्ध जेम्स जूनियर स्कूल ने तो संस्कृत को अनिवार्य भाषा की मान्यता दी है जिससे उस विद्यालय के विद्यार्थी प्रतिवर्ष श्रेष्ठता से आगे बढ़ने का कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं । इसी तरह आयरलैंड में भी संस्कृत भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जा रहा है ।
एक अध्ययन के अनुसार देवभाषा संस्कृत की स्वरज्ञान की अदभुत विशिष्ठता के कारण शरीर के ऊर्जातंत्र का तीव्र विकास तो होता ही है , शरीर के बीमार या अविकसित तंतुओं को भी बल प्राप्त होता है । बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है । मस्तिष्क हमेशा स्थिर और जागृत रहता है ।
संस्कृत ही वह देवभाषा है जिसके एक एक शब्द के उच्चारण से मुखमुद्रा के भावों का प्रगटीकरण होता रहता है । इस कारण शरीर में रक्तप्रवाह (BP) , मधुमेह ( Diabetes) , कोलेस्ट्रॉल आदि दूषित रोगों को रोका जा सकता है । यह कथन अमेरिकन हिन्दू यूनिवर्सिटी ने एक गहन अध्ययन के बाद प्रकाशित की है ।
संस्कृत भाषा आश्चर्यजनक रूप से मानव के विचारों को शुद्ध और पवित्र करती है । रसायन , आध्यात्म , निरापदभाव , कला आदि विषयों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है । प्रकृति के उत्थान और उत्पादन की सहायक है यह देवभाषा ।
इस देवभाषा में विश्व की प्रमुख सभ्यताओं ( सनातन , बौद्ध , पाली , जैन और प्राकृत ) के अनेकानेक ग्रन्थ लिखे गए हैं । किसी भी भाषा में इतनी सभ्यताओं के ग्रंथ नहीं लिखे गए हैं ।
जर्मनी की राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी का कहना है कि भौगोलिक परिवर्तन और सूर्य की गति के आधार पर पंचाग ( कैलेंडर ) का निर्माण संस्कृत भाषा में ही हुआ है जो सिद्ध करता है कि यह पूर्णतया वैज्ञानिक भाषा है ।
इंग्लैंड में तो संस्कृत के श्रीचक्र के आधार पर सुरक्षा के तरीकों पर अध्ययन हो रहा है ।
यही एक भाषा है जिसमें नित नए शब्दों का निर्माण होता रहता है । विख्यात व्याकरण ऋषि पाणिनी द्वारा रचित इसके तरीके अदभुत हैं । ऐसी व्यवस्थित व्याकरण , जिसमें भाषा के एक एक शब्द का विश्लेषण है , विश्व की किसी अन्य भाषा में नहीं है । महर्षि पाणिनी के पश्चात महर्षि वररुचि और महर्षि पतञ्जलि ने इस भाषा को और भी उन्नत बनाया ।
ऐसी हमारी देवभाषा का उसी की जन्मभूमि में अनादर क्यों !!!
सादर नमन ।
#Sanskritwala
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