Jun 21, 2023
How Can we use AI for Sanskrit ? | Sanskrit Essay for AI or AI for Sanskrit ? | Use of AI in Sanskrit | Sanskritwala
Apr 17, 2023
उच्चारणशुद्धिः Webinar | All about उच्चारणशुद्धिः Webinar | From Team ॥ पठनम् ॥
उच्चारणशुद्धिः
A webinar to imrove your pronunciation.
श्री सूक्त का अर्थ | Shri Suktam | Sri Suktham | Shree Suktam
Apr 2, 2023
Importance of Sanskrit Language Essay | Essay on importance of Sanskrit lamguage | Sanskritwala
Dec 19, 2022
रुद्राष्टकम् | Rudrashtakam with Hindi meaning | Rudrashtakam | रुद्राष्टकम् का अनुवाद
Jun 22, 2022
Kissing related Sanskrit words | Kiss in Sanskrit 😘
😘 Sanskrit word for Kiss 😘
1. अधरपानम्—drinking the lips
2. अधररसपानम्—drinking nectar from the lips
3. अनुघ्राणम्—smelling (=kissing) repeatedly
4. अभिचुम्बनम्—touching with the face (=lips) on both sides
5. अवघ्रः—an act of smelling (=kissing) with determination
6. अवघ्राणम्—smelling (=kissing) with determination
7. आघ्राणम्—smelling (=kissing) all around
8. आचुम्बनम्—touching with the face (=lips) all around
9. आरेहणम्—licking all around
10. आस्यन्धयः/यी—he/she who drinks from the mouth (=a kisser)
11. उपघ्राणम्/उपशिङ्घनम्—smelling (=kissing) up-close
12. उपाघ्राणम्—smelling (=kissing) up-close from all sides
13. चुम्बनदानम्—the gift of a kiss
14. चुम्बनम्—touching with the face (=lips)
15. दशनोच्छिष्टम्/वदनोच्छिष्टम्—act in which something (=saliva) is left from the teeth/mouth
16. नातिविशदम्—[a kiss] that is not too obvious or apparent (=kissing discreetly)
17. निंसा—touching closely
18. निंसी/निंसिनी—he/she who touches closely (=a kisser)
19. निक्षः/निक्षा—he/she who pierces with the lips (=a kisser)
20. निक्षणम्—piercing [with the lips]
21. निपानम्—intensely drinking or sucking [with the lips]
22. निमित्तकम्—the cause [of सुरतिः]
23. नेत्रनिंसी/नेत्रनिंसिनी—he/she who kisses the eyes (=an eye-kisser)
24. परिघ्राणम्—smelling (=kissing) everywhere, covering with kisses (=kissing heartily or passionately)
25. परिचुम्बनम्—torching with the mouth everywhere, covering with kisses (=kissing heartily or passionately)
26. परिणिंसकः/परिणिंसिका—he/she who touches closely from all around (=a kisser)
27. परिणिंसा—touching closely from all around
28. पानम्—drinking [saliva]
29. पुष्पनिक्षः—he who kisses flowers (=a bee)
30. प्रणिंसा—touching closely with eminence
31. प्रणिक्षणम्—eminently piercing [with the lips]
32. मुखग्रहणम्—receiving somebody's face/mouth
33. मुखास्वादः—savoring somebody's face/mouth
34. रेहणम्—licking
35. विचुम्बनम्—a special kiss
36. विसर्गचुम्बनम्—a parting kiss
37. समाघ्राणम्—smelling (=kissing) properly from all sides
38. समुपघ्राणम्—smelling (=kissing) prop
Jan 3, 2022
संस्कृत भाषा का महत्व | संस्कृत भाषा की गरिमा | संस्कृत की विशिष्टता | संस्कृत भाषा के महत्व पर निबंध
Dec 8, 2021
भगवद गीता के बारे में | Bhagavad Geeta | श्रीमद भगवद गीता | Buy Bhagavad Gita online
भगवद्गीता के बारे में
स्वयं भगवान ने दिया है गीता का उपदेश
निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है गीता
Dec 3, 2021
गोत्र क्या है ? गोत्र कितने है ?
Nov 6, 2021
हिन्दुओं के रीति रिवाज तथा मान्यताएं | Hindu Rights Rituals Customs and Traditions | Hindu Manyatae
हिन्दुओं के रीत रिवाज तथा मान्यताए
हेल्लो डिअर रीडर्स !
आज हम एक अनूठे पुस्तक के बारे में जानेंगे | इस पुस्तक का नाम है हिन्दुओ के रीत रिवाज तथा मान्यताए | दोस्तों यह पुस्तक हिन्दुओ के रीत रिवाज एवं मान्यताए अंग्रेजी में भी उपलब्ध है जिसका नाम है Hindu Rights Rituals Customs and Traditions. हिन्दुओ के रीत रिवाज एवं मान्यताए पुस्तक में हिन्दूओ के सदीओ पुराने जो रीत रिवाज एवं मान्यताए है इसकी धार्मिक एवं पौराणिक आधार पे चर्चा की गई है |
डॉ. चंद्रप्रकाश गंगराडे द्वारा लिखित यह पुस्तक सभी हिन्दुओ के पास होनी चाहिए | यह पुस्तक हिन्दुओ के रीत रिवाज तथा मान्यताए में निम्नलिखित विषयो का उल्लेख किया गया है |
- सर्व प्रथम गणेशजी का पूजन क्यों किया जाता है ?
- पारद शिवलिंग एवं शालिग्राम पूजन क्यों ?
- हनुमानजी को सिन्दूर क्यों चढ़ाया जाता है ?
- सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण के समय भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ?
- गंगा इतनी विशेष नदी क्यों है ?
- हिन्दू धर्ममे संस्कारों का क्या महत्व है ?
- गर्भाधान संस्कार कायो करना चाहिए ?
- यज्ञोपवीत संस्कार क्यों करना चाहिए ?
- सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है ?
- शिखा का क्या महत्व है ?
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- शौच के समय जनेऊ कान पे लपेटना क्यों जरुरी है ?
- मृतक का तर्पण क्यों करना चाहिए ?
- विवाह में सात फेरे क्यों ?
- सगोत्र विवाह करना वर्जित क्यों है ?
- पूजा से पहले स्नान की क्या आवश्यकता है ?
- ब्राह्ममुहूर्त में उठने के फायदे ?
- पूजा पाठ में दीपक जलाना क्यों आवश्यक है ?
- पुनर्जन्म की मान्यता में विश्वास क्यों ?
- शुभ कार्यो में पूर्व दिशा में ही मुख क्यों रखते है ?
- पूजा में नारियल क्यों प्रयोग किया जाता है ?
- देवताओं की मूर्ति की परिक्रामा क्यों की जाती है ?
- जल अर्घ्य क्यों देना चाहिए ?
- तुलसी का विशेष महत्व क्यों ?
- पीपल के पेड़ का पूजन क्यों किया जाता है ?
- तिलक क्यों किया जाता है ?
- गायत्री मंत्र की सब से अधिक मान्यता क्यों है ?
- यज्ञ में आहुति के साथ स्वाहा क्यों बोलते है ?
- मंत्रो की शक्ति में विश्वास क्यों करे ?
- ब्राह्मण को ही सर्वाधिक महत्व क्यों ?
- जाती पाती का भेदभाव अनुचित क्यों है ?
- मंदिर में घंटा क्यों बजाते है ?
- सत्यनारायण की कथा का महत्व क्या है ?
- सुन्दर काण्ड का धार्मिक महत्व क्या है ?
- दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों ?
- मंगल सूत्र क्यों धारण करे ?
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Sep 22, 2021
Gayatri Mantra | Gayatri Mantra Meaning | Sanskrit Mantra Meaning
गायत्री की महिमा
Sep 18, 2021
गणित शास्त्र के विश्व के सबसे प्राचीन विद्वान - स्वामि ज्येष्ठदेव
स्वामि ज्येष्ठदेव
प्राचीन भारत के गणित विद्या के प्रखर पण्डित विद्वान स्वामि ज्येष्ठदेवजी (Swami Jyeshth Dev) के बारे मे आज बात करनी है ।
Mar 22, 2021
संस्कृत में रोजगार की आशाए ।
संस्कृत अध्ययन के बाद रोजगारी की बहोत ही अच्छी आशाए की जा सकती है । संस्कृत अध्ययन कर के सभी युवा रोज़गारी प्राप्त कर सकता है । संस्कृत पढ़ के भी अच्छी नौकरी मिल सकती है ।
समाज में पूर्वाग्रह के कारण आमतौर पर यह माना जाता है की संस्कृत भाषा का अध्ययन करने के बाद रोजगार की बहुत कम संभावनाएं शेष रहती है. यह धारणा तथ्यहीन होने के साथ-साथ समाज की अपरिपक्वता का उदहारण भी है. संस्कृत भाषा एवं विषय के अध्ययन के पश्चात् युवाओं के लिए रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध हैं, जिनके बारे में विद्यार्थिओं और अभिभावकों को जानकारी होना अति आवश्यक है, तभी वे संस्कृत भाषा के अध्ययन की ओर अभिमुख होंगे. इसी दृष्टि से संस्कृत भाषा के अध्ययन के पश्चात् प्राप्त होने वाले रोजगार के अवसरों की यहाँ पर चर्चा की जा रही है. ये अवसर सरकारी, निजी और सामाजिक सभी क्षेत्रों में मौजूद हैं.
सरकारी क्षेत्र –
प्रशासनिक सेवा -
यह सेवा भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में एक है, जिसके प्रति युवाओं का रुझान सबसे अधिक होता है. पद एवं वेतनमान दोनों स्तरों पर इस सेवा में उच्च स्तर तक पहुंचा जा सकता है. केन्द्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य स्तर पर राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा इसके लिए प्रतिवर्ष रिक्तियां निकाली जाती हैं. जो युवा संस्कृत से स्नातक हैं, वे इसके लिए आवेदन कर सकते हैं.
प्राथमिक अध्यापक –
प्राथमिक स्तर पर अध्यापन के लिए देश भर में शिक्षकों की आवश्यकता रहती है, किसी राज्य में बारहवीं कक्षा तो कहीं स्नातक कक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थी शिक्षक-प्रशिक्षण के पात्र होते हैं. इस प्रशिक्षण के पश्चात् ही प्राथमिक स्तर पर अध्यापन के लिए पात्रता सुनिश्चित होती है. जिन छात्रों ने संस्कृत विषय के साथ विशारद या शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे भी इस प्रशिक्षण के लिए पात्र होते हैं. राज्यानुसार प्रशिक्षण एवं भर्ती के नियम अलग-अलग हैं.
प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक –
देश भर में माध्यमिक विद्यालयों में कहीं अनिवार्य और कहीं ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत विषय का अध्यापन किया जाता है, जिसमें पढ़ाने वाले प्रशिक्षित अध्यापकों का चयन राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. संस्कृत से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण और अध्यापन में प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी इसके लिए पात्र होते हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है .
प्रवक्ता –
देश भर में उच्च माध्यमिक विद्यालयों में ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत का अध्यापन किया जाता है, जिसमें अध्यापन करने वाले प्रवक्ताओं का चयन केंद्र एवं राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. संस्कृत विषय से परास्नातक परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थी इसके लिए पात्र होते हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
सहायक व्याख्याता –
देश भर के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों एवं राज्य विश्वविद्यालयों में ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत का अध्यापन किया जाता है, जिसमें अध्यापन करने वाले सहायक व्याख्याताओं का चयन विश्वविद्यालय अथवा राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा/कनिष्ठ शोध अध्येतावृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण छात्र इसमें चयन के लिए पात्र होते हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
अनुसन्धान सहायक -
संस्कृत में शोध कार्य करने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र के शोध-संस्थान अपने यहाँ अनुसन्धान सहायकों की नियुक्ति करते हैं. इस पद के लिए अनिवार्य योग्यता संस्कृत विषय में परास्नातक अथवा विद्यावारिधि है. ये नियुक्तियाँ कहीं-कहीं पर वेतनमान और कहीं पर निश्चित मानदेय पर की जाती हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
सेना में धर्मगुरु –
भारतीय सेना की तीनों शाखाओं में अधिकारी स्तर का धर्मगुरु का पद होता है. जिन छात्रों ने संस्कृत विषय के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की है तथा निर्धारित शारीरिक मानदण्ड को पूरा करते हैं, वे इस परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं. सेना के भर्ती बोर्ड द्वारा समय समय-समय पर इस पद हेतु रिक्तियां निकाली जाती हैं. विशेष विवरण एवं रिक्तियों की अद्यतन सूचना अकादमी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
अनुवादक-
सरकारी प्रतिष्ठान और सामाजिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों में अनुवादक का पद होता है, विभिन्न भाषाओं में आये पत्रों तथा अन्य साहित्य के अनुवाद कार्य के लिए इस पद पर नियुक्ति की जाती है. स्नातक स्तर पर संस्कृत का अध्ययन तथा अनुवाद में डिप्लोमा प्राप्त करने वाले छात्र इसमें आवेदन करने के लिए अर्ह होते हैं. इस पद के लिए माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों के बराबर ही वेतनमान निर्धारित होता है.
योग शिक्षक –
आज दुनियाँ भर में जिस प्रकार स्वास्थ्य और योग के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, उससे योग प्रशिक्षकों की मांग भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. संस्कृत के जिन स्नातकों ने गुरुकुल में योग का अभ्यास किया है और योगशिक्षा में कोई उपाधि प्राप्त की है, वे इस क्षेत्र में आसानी से रोजगार पा सकते हैं. सरकारी विद्यालयों एवं गैर सरकारी उपक्रमों में योग प्रशिक्षितों के लिए पर्याप्त मात्रा में रिक्तियां निकलती रहती हैं. आजकल बहुराष्ट्रीय संस्थाएं भी योग प्रशिक्षकों की सेवाएँ लेने लगीं हैं.
पत्रकार –
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है. भारत में यह फलता-फूलता उद्योग है, जो युवाओं के लिए न केवल रोजगार के अवसर उपलब्ध करता है, अपितु चुनौतीपूर्ण कार्यों के माध्यम से यश और प्रतिष्ठा भी प्रदान करता है. जिन छात्रों ने संस्कृत में स्नातक उपाधि प्राप्त की है तथा पत्रकारिता में प्रशिक्षण लिया है वे इस क्षेत्र में कार्य के लिए पात्र होते हैं. भाषा पर मजबूत पकड़ के कारण संस्कृत के छात्रों को अन्य प्रतियोगियों की अपेक्षा वरीयता प्राप्त होती है. सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में कार्य के अनेक अवसरों के साथ वेतन व सुविधाओं की यहाँ कोई सीमा नहीं होती है.
सम्पादक –
किसी पुस्तक, पत्र–पत्रिका के प्रकाशन में सम्पादक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. जो छात्र भाषा व साहित्य आदि की अच्छी समझ रखते हैं, वे इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए अर्ह होते हैं. हिन्दीभाषी क्षेत्र में पत्र-पत्रिका या पुस्तकों के प्रकाशन संस्थानों में सम्पादक का कार्य करने के लिए संस्कृत के अध्येताओं को वरीयता दी जाती है. इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र में अवसर हैं, जहाँ वेतन और प्रतिष्ठा की लिए असीम संभावनाएं हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया के आ जाने के बाद यह क्षेत्र बहुत ही आकर्षक और चुनौतीपूर्ण हो गया है.
लिपिक –
सरकारी क्षेत्र (कर्मचारी चयन आयोग एवं रेलवे आदि) में लिपिक संवर्ग में नियुक्ति के लिए बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक है. संस्कृत के वे छात्र जिन्होंने बारहवीं या विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे इस नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. पूरे वर्ष किसी न किसी विभाग में इस पद पर भर्ती के लिए रिक्तियां आती रहती हैं. इसके लिए कम्प्यूटर का ज्ञान भी अनिवार्य हो गया है.
अन्य सरकारी सेवाएँ-
उपर्युक्त सेवाओं के अतिरिक्त भी सरकारी क्षेत्र में अनेक ऐसे अवसर हैं, जहाँ संस्कृत के अध्येता रोजगार पा सकते हैं, विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपनी जागरूकता का स्तर बढ़ाएं तथा नवीनतम तकनीक का उपयोग करने में पीछें न रहें. संस्कृत भाषा के अध्ययन के साथ तकनीक की जानकारी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का अध्ययन रोजगार के नए-नए अवसर उपलब्ध करा सकता है.
निजी एवं सामाजिक क्षेत्र में रोजगार –
लेखक –
लेखन एक कला है, जिसके लिए प्रेरणा एवं कौशल लेखक के समय से पूर्व का साहित्य देता है. शब्दकोश, साहित्यिक मान्यताएं, विषयवस्तु और लेखकीय दृष्टि के लिए भी परम्परागत साहित्य ही सबसे बड़ा स्रोत होता है. संस्कृत में न केवल दुनियाँ का सबसे विशाल साहित्य सुरक्षित है, अपितु वर्णन और विषय वैविध्य की दृष्टि से भी सबसे अनूठा है. जिन छात्रों की साहित्य विमर्श एवं सृजन में अभिरुचि है, वे संस्कृत साहित्य से प्रेरणा लेकर लेखन कार्य कर सकते है. आजकल लेखन का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जिसमें प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, विज्ञापन, रेडियो, टेलीविज़न आदि के लिए लेखन भी आता है. इस क्षेत्र में रोजगार के असीमित अवसर उपलब्ध हैं.
ज्योतिषी –
ज्योतिष का अध्ययन न केवल स्वयं के बौद्धिक व्यायाम और भविष्य के ज्ञान के रोमांच से युक्त है, अपितु आमजन की जिज्ञासा का भी विशिष्ट केंद्र है. दुनियाँ भर में प्रायः इसके जानने वालों के पास भीड़ लगी रहती है. व्यक्ति से लेकर सरकारे तक इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का उपयोग करने में पीछे नहीं हैं. जहाँ तक आय की बात है, ये अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.
वास्तु सलाहकार -
संस्कृत के ग्रन्थों में वास्तुपुरुष की चर्चा की गयी है, जिसका गृह, कार्यालय आदि के निर्माण में बड़ा महत्व है. आजकल वास्तु सलाहकार के रूप में रोजगार का एक नया विकल्प उपलब्ध है. संस्कृत के स्नातक वास्तुविज्ञान में दक्ष होकर रोजगार का अवसर सृजित कर सकते हैं. इस क्षेत्र में भी आय अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.
पुरोहित –
भारत जैसे देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले सोलह संस्कारों एवं अन्य उपासना अनुष्ठानों में पुरोहित की आवश्यकता पड़ती है. इसके विशेषज्ञ पुरोहित वर्ग के लिए रोजगार का यह एक अच्छा विकल्प है. लोकजीवन के साथ स्वयं के संस्कार और जीविका हेतु धन की प्राप्ति का इससे अच्छा कौन सा मार्ग हो सकता है. सुसंस्कृतज्ञों के इस क्षेत्र में आने से न केवल कर्मकाण्ड के प्रति आमलोगों में विश्वसनीयता की वृद्धि होगी अपितु उपासना कर्म भी फलदायी होगा. अस्तु परम्परागत संस्कृत के अध्येताओं को इस विकल्प पर विचार कर विशेषज्ञ सेवाएँ देने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस क्षेत्र में भी आय अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.
प्रवाचक -
भारत सहित दुनियाँ भर में लोगों को बुराइयों से हटाकर सद्मार्ग पर ले जाने के प्रयास में प्रवाचकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है. जीवन और सम्पत्ति के प्रति लोगों की असुरक्षा की भावना और उससे उत्पन्न तनाव की स्थिति गम्भीर होती जा रही है. इससे मुक्ति दिलाकर समाज को पुनः आशावाद और सहज जीवन की ओर मोड़ने का कार्य प्रवाचकों के उपर है. भारतीय दर्शन और लोक जीवन की बेहतर समझ रखने वाले संस्कृत के अध्येता इस क्षेत्र में आकर सामाजिक कल्याण के साथ आजीविका के लिए श्रेष्ठ अवसर पा सकते हैं. इस क्षेत्र में यश और प्रतिष्ठा के साथ जीवनवृत्ति की अपार सम्भावनाएं हैं.
शिक्षाशास्त्री -
संस्कृत ग्रन्थों एवं भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन और उसमें निहित शैक्षिक मूल्यों का की समझ रखने वाले अध्येता शैक्षिक क्षेत्र में उन्नयन का कार्य कर सकते हैं. नवीनताम शैक्षिक तकनीक और प्रविधियों के साथ बदलते समाज पर शोध और विमर्श करने वाले अध्येताओं को निजी क्षेत्र में बड़ी प्रतिष्ठा और आय के अवसर प्राप्त होते हैं. शैक्षिक एवं शोध संस्थानों के साथ-साथ अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए इनकी विशेष मांग रहती है.
दार्शनिक –
दर्शन व्यक्ति से लेकर समाज और राष्ट्र तक की दिशा तय करता है. समाज में कुछ ऐसे प्रश्नों पर विमर्श करने, जिनके समाधान आम सामाजिक व्यवस्था और तन्त्र के पास नहीं होते हैं अथवा बदलते सामाजिक और वैश्विक परिदृश्य में परम्परागत मूल्यों के साथ नवीन जीवन दृष्टि का तालमेल बिठाने में दार्शनिकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसलिए समाज में इन्हें सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है. इनके लेखों और व्याख्यानों से प्राप्त होने वाली आय उच्चस्तरीय जीवनयापन के लिए पर्याप्त होती है. इसके अतिरिक्त ऐसे अध्येताओं को औपचारिक रूप से कुछ संस्थानों में सेवा करने के अवसर भी प्राप्त होते हैं.
समाजसुधारक -
सामाजिक समरसता की स्थापना और समाज को जोड़ने में समाज सेवकों की बड़ी भूमिका होती है. छोटे-बड़े आयोजन हों या आपदा, गरीबों की शिक्षा–दीक्षा, स्वास्थ्य हो या अन्य ऐसे कार्य जिस ओर सुविधा सम्पन्न वर्ग का ध्यान नहीं जाता है, उस ओर समाज सुधारक कार्य करते हैं. समकालीन अव्यवस्थाओं और बुराइयों से समाज को बचाकर रखना, सत्ता और धर्मं की स्थापनाओं को समाज के निचले तबके तक पहुँचाने का कठिन कार्य भी इन्हीं समाज सुधारकों का है. समाज में ऐसे लोगों की बड़ी प्रतिष्ठा है. कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं ऐसे लोगों के कार्य की सराहना करतीं हैं और बड़े-बड़े पुरस्कारों से उनका सम्मान करती हैं. ऐसे लोगों की जीवनवृत्ति सञ्चालन का दायित्व समाज अथवा स्वयंसेवी संस्थाएं स्वयं अपने ऊपर ले लेती हैं.
नेता -
छोटी से छोटी लोकतान्त्रिक इकाई से लेकर प्रदेश और राष्ट्र में नेतृत्व और व्यवस्था बनाने का गुरुतर दायित्व नेता के कन्धों पर होता है. नेता समाज या राष्ट्र को जिस दिशा की ओर ले जाना चाहता है, जनता उसी की ओर उन्मुख होकर चलने को तैयार हो जाती है. इसलिए किसी भी राष्ट्र में नेतृत्व का शिक्षित और संस्कारी होना अत्यावश्यक है. भारत जैसे बहुल जनसँख्या प्रधान और विशाल देश में केवल राजनीति में ही नहीं अपितु प्रत्येक क्षेत्र में कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है. संस्कृत के अध्येताओं से ये अपेक्षा रहती है की वे जिस क्षेत्र में जायेंगे वहाँ पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करेंगे, इसलिए उनके लिए यह क्षेत्र भी खुला हुआ है. इस क्षेत्र में पद, प्रतिष्ठा, चुनौतियाँ, अवसर और कार्यक्षेत्र की कोई सीमा नहीं हैं.
अन्वेषक –
पूरे संसार में इतिहास आदि के ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत संस्कृत साहित्य है. वेद, पुराण, रामायण और महाभारत से लेकर संस्कृत के ललित साहित्य में तत्कालीन समाज एवं व्यवस्था का चित्रण है. इतिहास, भूगोल, शासन व्यवस्था, व्यापार, कृषि, जलवायु, नदियाँ, बादल, अधिवास, ग्रह-नक्षत्र सबके बारे में संस्कृत के विशाल साहित्य में चर्चा मिलती है. इन तत्वों के बारे में विमर्श करना तथा समय की आवश्यकता के अनुसार इनका विश्लेषण करना अन्वेषकों का कार्यक्षेत्र है. नासा जैसी संस्थाएं इस पर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहीं है. भारत में भी ऐसे विद्वानों की आवश्कता है, जो तथ्यों को जुटाकर उनकी प्रामाणिकता पर कार्य करें.
उद्योगपति -
भारत जैसे विशाल जनसँख्या वाले देश में कल कारखाने लगाना बहुत ही लाभ देने वाला रोजगार मन जाता है. संस्कृत का अध्येता उद्योग लगाकर कितना प्रगति कर सकता है, इसका अनुमान पतंजलि प्रतिष्ठान जैसे उपक्रमों से लगाया जा सकता है. खान-पान, स्वास्थ्य, सौन्दर्य प्रसाधन पूजा सामग्री आदि ऐसे अनेक क्षेत्र है, जिसमें संस्कृत का ज्ञान सहायता करता है. भावनात्मक रूप से भी लोग इस क्षेत्र में आदर प्राप्त विद्वानों के उत्पाद प्रयोग करने में आगे देखे जाते हैं. इसके अतिरिक्त ऐसा कोई उद्योग-व्यापार नहीं है, जहाँ संस्कृत अध्येता के लिए अवसर न हो.
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संस्कृत का अध्ययन करने के बाद यदि इतनी कुछ संभावनाएं दिख रही है तो हमें जी जान से संस्कृताध्ययन करना चाहिए ।
जयतु संस्कृतम् ।
WhatsApp ग्रुप में से साभार ।
जिसने भी इतनी अच्छी माहिती एकत्र की उनको शत् शत् प्रणाम ।